Adhyay 2
The second chapter of the Bhagavad Gita is Sankhya Yoga. This is the most important chapter of the Bhagavad Gita as Lord Krishna condenses the teachings of the entire Gita in this chapter. This chapter is the essence of the entire Gita. Sankhya Yoga can be categorized into 4 main topics :
- Arjuna completely surrenders himself to Lord Krishna and accepts his position as a disciple and Krishna as his Guru. He requests Krishna to guide him on how to dismiss his sorrow.
- Explanation of the main cause of all grief, which is ignorance of the true nature of Self.
- Karma Yoga - the discipline of selfless action without being attached to its fruits.
- Description of a Perfect Man - One whose mind is steady and one-pointed.
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सञ्जय उवाच ।
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् । विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन: ॥Translation in Hindi :
संजय बोले : उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा । ॥1॥
Translation in English :
Sanjaya said : Thus Lord Madhusudan said this word to Arjuna, who was full of compassion and full of tears and mournful eyes.
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श्रीभगवानुवाच ।
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् । अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥Translation in Hindi :
श्रीभगवान बोले : हे अर्जुन ! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है । ॥2॥
Translation in English :
Sri Bhagavan said : O Arjuna ! For what reason did you get this attachment at this time ? Because its neither performed by superior men, nor its a giver to heaven, nor its one who does fame.
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क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्तवय्युपपद्यते ।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥
Translation in Hindi :
इसलिए हे अर्जुन ! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप ! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जा । ॥3॥
Translation in English :
Therefore, O Arjuna ! Don't get impotence, it doesn't seem right in you. O Parantap ! Abandoning petty weakness of heart and stand up for war.
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अर्जुन उवाच ।
कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन । इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ॥Translation in Hindi :
अर्जुन बोले : हे मधुसूदन ! मैं रणभूमि में किस प्रकार बाणों से भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्ध लड़ूँगा ?
क्योंकि हे अरिसूदन ! वे दोनों ही पूजनीय हैं । ॥4॥Translation in English :
Arjuna said : O Madhusudan ! How will I fight against Bhishma Pitamah and Dronacharya with arrows on the battlefield ?
Because O Arisudan ! They are both revered. -
गुरूनहत्वा हि महानुभावान्
श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके ।
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् ॥Translation in Hindi :
इसलिए इन महानुभाव गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ क्योंकि गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रुधिर से सने हुए अर्थ और कामरूप भोगों को ही तो भोगूँगा । ॥5॥
Translation in English :
Therefore, instead of killing these noble gurus, I consider it beneficial to eat alms food in this world, because even after killing the gurus, I will only enjoy the pleasures of blood stained with blood in this world.
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न चैतद्विद्म: कतरन्नो गरीयो
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: ।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम स्तेऽवस्थिता: प्रमुखे धार्तराष्ट्रा: ॥Translation in Hindi :
हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए युद्ध करना और न करना - इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे । और जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे मुकाबले में खड़े हैं । ॥6॥
Translation in English :
We don't even know whether to fight or not to fight for us - which is better, or whether we will win them or they will make us win. And by killing whom, we do not even want to live, only the sons of our soul mate Dhritarashtra are standing in front of us.
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कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव:
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेता: ।
यच्छ्रेय: स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥Translation in Hindi :
इसलिए कायरता रूप दोष से उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिए कहिए क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिए आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिए । ॥7॥
Translation in English :
That's why the nature of being hurt by a cowardly form of faults and having a fascinated mind about religion, I ask you to tell me the means which are definitely beneficial, because I am your disciple, so teach me taking refuge in you.
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न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्
यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् ।
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥Translation in Hindi :
क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य सम्पन्न राज्य को और देवताओं के स्वामीपने को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर सके । ॥8॥
Translation in English :
For even having attained a perfect kingdom, a state of wealth and lordship of the gods, I do not see a way to remove the drying sorrow of my senses.
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सञ्जय उवाच ।
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेश: परन्तप ।
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ॥Translation in Hindi :
संजय बोले : हे राजन् ! निद्रा को जीतने वाले अर्जुन अंतर्यामी श्रीकृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार कहकर फिर श्री गोविंद भगवान् से 'युद्ध नहीं करूँगा' यह स्पष्ट कहकर चुप हो गए । ॥9॥
Translation in English :
Sanjay said : O Rajan ! Arjuna, who had conquered sleep, became silent after saying this to the Antaryami Shri Krishna Maharaj, again saying 'I will not fight' with Lord Shri Govind.
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तमुवाच हृषीकेश: प्रहसन्निव भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वच: ॥
Translation in Hindi :
हे भरतवंशी धृतराष्ट्र ! अंतर्यामी श्रीकृष्ण महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हँसते हुए से यह वचन बोले । ॥10॥
Translation in English :
O Dhritarashtra of Bharata's dynasty ! Antaryami Shri Krishna Maharaj, while mourning between the two armies, spoke these words to that Arjuna laughingly.
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श्रीभगवानुवाच ।
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे । गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: ॥Translation in Hindi :
श्री भगवान बोले : हे अर्जुन ! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और पण्डितों के से वचनों को कहता है, परन्तु जिनके प्राण चले गए हैं, उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए हैं उनके लिए भी पण्डितजन शोक नहीं करते । ॥11॥
Translation in English :
Shri Bhagwan said : O Arjuna ! You do not grieve for the mourning men and speak words of the wise, but the wise do not grieve for those who have lost their lives and those who have not lost their lives.